राजकीय महाविद्यालय बंजार में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू, शिक्षा निदेशक ने की शुभारंभ।

राजकीय महाविद्यालय बंजार में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन शुरु, शिक्षा निदेशक ने किया शुभारंभ,
सम्मेलन के प्रथम दिवस में देश-विदेश के 40 विद्वानों ने प्रस्तुत किए शोध-पत्र
कुल्लू, 13 अगस्त।
राजकीय महाविद्यालय बंजार में आज, “आइडेंटिटी, कल्चर, डिवेलपमेंट एंड इन्वाइरनमेंट इन हिमालयाज़ः चॅलेंजिज़ एंड फ्यूचर परस्पेक्ट्ज़“ विषय पर आधारित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हो गया है, जिसका शुभारंभ कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमरजीत के. शर्मा की ओर से डॉ. हरीश कुमार (अतिरिक्त निदेशक, उच्च शिक्षा निदेशालय शिमला) ने वर्चुअल माध्यम से किया, जबकि सम्मेलन की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. रेणुका थपलियाल ने की। सम्मेलन के शुभारंभ अवसर पर डॉ. गोपाल कृष्ण संघईक (ओएसडी कॉलेज सह राज्य नोडल अधिकारी, उच्च शिक्षा निदेशालय हिमाचल प्रदेश) ने भी अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज की।
राजकीय महाविद्यालय बंजार की प्राचार्या डॉ. रेणुका थपलियाल ने जानकारी दी कि इस महत्त्वपूर्ण सम्मेलन वर्चुअल मोड़ में आयोजित किया गया, जिसमें गूगल मीट के माध्यम से विभिन्न वक्ताओं ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। मुख्य वक्ताओं के रूप में डॉ. जे.सी. कुनियाल (वैज्ञानिक-जी एवं प्रमुख, पर्यावरण आकलन एवं जलवायु परिवर्तन केंद्र, जी.बी. पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा, उत्तराखंड) और मानद फेलो, बाथ स्पा यूनिवर्सिटी, लंदन ने अपने वक्तव्य में हिमालयन क्षेत्र में पर्यावरणीय समस्याओं और बजौरा, मौहल (कुल्लू) में किए गए अपने शोध को साझा किये।
इस अवसर पर आमंत्रित वक्ताओं में डॉ. स्वागता वासु, डॉ. प्रिय रंजन, डॉ. जितेंद्र डी. सोनी, डॉ. सचिन कुमार, डॉ. पवन कुमार, डॉ. कृष्णा प्रसाद भंडारी शामिल थे, जिन्होंने सम्मेलन की मुख्य थीम “आइडेंटिटी, कल्चर, डिवेलपमेंट एंड इन्वाइरनमेंट इन हिमालयाज़ः चॅलेंजिज़ एंड फ्यूचर परस्पेक्ट्ज़“ पर विचार व्यक्त किए। इस सम्मेलन को चार तकनीकी सत्रों में विभाजित किया गया था, जिसकी अध्यक्षता डॉ. कंचन चंदन, डॉ. मीना कुमारी, डॉ. निर्मला चौहान, और डॉ. जागृति उपाध्याय ने की।
आज के शुभारंभ सत्र एवं सम्मेलन के प्रथम दिवस में कुल 40 वक्ताओं ने अपने विचार प्रस्तुत किए। इस दौरान महाविद्यालय बंजार के 200 विद्यार्थियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड़ के माध्यम से हिमालयन क्षेत्र की समस्याओं और समाधानों पर 28 शोधपत्रों को सुना और विचार-विमर्श किया।

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